महात्मा बुद्ध एक परिचय/ Mahatma Buddha an Introduction

महात्मा बुद्ध : पूर्ण परिचय

महात्मा बुद्ध, जिनका मूल नाम सिद्धार्थ गौतम था, भारतीय दर्शन, धर्म और संस्कृति के एक महान प्रतीक हैं। उनका जीवन और शिक्षाएँ न केवल भारत बल्कि विश्व भर में प्रभावशाली रही हैं। यहाँ उनका पूर्ण परिचय, साहित्य में पूछे गए प्रश्नों के संदर्भ में, और उनकी वास्तुकला में योगदान का वर्णन प्रस्तुत है। 



 जन्म और प्रारंभिक जीवन

  • जन्म: लगभग 563 ई.पू. में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में शाक्य गणराज्य के राजकुमार के रूप में हुआ।
  • पिता: शुद्धोधन (शाक्य गणराज्य के प्रमुख)।
  • माता: मायादेवी (जन्म के सात दिन बाद निधन)।
  • पालन-पोषण: सौतेली माँ गौतमी द्वारा, जिनके नाम पर उन्हें 'गौतम' कहा गया।
  • विवाह: 16 वर्ष की आयु में यशोधरा से, जिनसे पुत्र राहुल का जन्म हुआ।
  • जीवन: सिद्धार्थ को राजसी वैभव में रखा गया, लेकिन दुखों से दूर रखने का प्रयास किया गया।

 महाप्रस्थान

  • 29 वर्ष की आयु में, सिद्धार्थ ने चार दृश्य देखे: वृद्ध, रोगी, मृत व्यक्ति और संन्यासी। इनसे प्रेरित होकर उन्होंने सत्य की खोज के लिए राजमहल त्याग दिया, जिसे महाप्रस्थान कहा जाता है।

 ज्ञान प्राप्ति

  • तपस्या: सिद्धार्थ ने आलार कलाम और उद्दक रामपुत्त से शिक्षा ली और कठोर तपस्या की, लेकिन सत्य नहीं मिला।
  • मध्यम मार्ग: कठोर तप को त्यागकर मध्यम मार्ग अपनाया।
  • बोधि: 35 वर्ष की आयु में, वैशाख पूर्णिमा को बोधगया (बिहार) में पीपल वृक्ष (बोधि वृक्ष) के नीचे ध्यान करते हुए निर्वाण प्राप्त किया। तब से वे बुद्ध कहलाए।
  • धर्म प्रचार
  • प्रथम उपदेश: सारनाथ (वाराणसी) में धर्मचक्र प्रवर्तन के रूप में पाँच शिष्यों को चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी।
  • संघ: भिक्षु और भिक्षुणी संघ की स्थापना की, जो बौद्ध धर्म के प्रसार का आधार बना।
  • प्रचार: 45 वर्ष तक मगध, कोशल, वैशाली आदि क्षेत्रों में धर्म प्रचार किया।

 महापरिनिर्वाण

  • 483 ई.पू. (लगभग) में 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में महापरिनिर्वाण हुआ।
  • अंतिम शब्द: "सब कुछ नश्वर है, अपने उद्धार के लिए प्रयास करो।"
  • उनके अवशेषों को आठ भागों में बाँटकर स्तूपों में रखा गया।

2. बुद्ध की शिक्षाएँ

बुद्ध की शिक्षाएँ मानव कल्याण, अहिंसा और तर्क पर आधारित हैं। प्रमुख सिद्धांत:

(i) चार आर्य सत्य

  1. दुख: जीवन में दुख है (जन्म, रोग, मृत्यु)।
  2. दुख समुदाय: दुख का कारण तृष्णा (लालसा) है।
  3. दुख निरोध: दुख का अंत संभव है।
  4. दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा: दुख के अंत का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।

(ii) अष्टांगिक मार्ग

  • शील: सम्यक वाणी, कर्म, आजीविका।
  • समाधि: सम्यक प्रयास, स्मृति, समाधि।
  • प्रज्ञा: सम्यक दृष्टि, संकल्प।

(iii) अन्य सिद्धांत

  • अनित्यता: सब कुछ नश्वर है।
  • अनात्मवाद: कोई स्थायी आत्मा नहीं।
  • कर्म और पुनर्जनम: कर्म जीवन चक्र को प्रभावित करता है।
  • अहिंसा और करुणा: सभी प्राणियों के प्रति करुणा।

3. बौद्ध साहित्य में पूछे जाने वाले प्रश्नों के संदर्भ

UPSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बौद्ध साहित्य से संबंधित प्रश्न प्राचीन इतिहास, संस्कृति और दर्शन से जुड़े होते हैं। प्रमुख बिंदु और संभावित प्रश्न:

(i) बौद्ध साहित्य का परिचय

  • त्रिपिटक: बौद्ध धर्म का मूल साहित्य, पाली भाषा में। इसमें तीन भाग हैं:
    1. विनय पिटक: भिक्षु-भिक्षुणियों के अनुशासन नियम।
    2. सुत्त पिटक: बुद्ध के उपदेश और संवाद।
    3. अभिधम्म पिटक: दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
  • जातक कथाएँ: बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ, नैतिकता और कर्म पर आधारित।
  • मिलिंदपन्हो: राजा मेनेंडर और भिक्षु नागसेन के संवाद, बौद्ध दर्शन की व्याख्या।
  • दिव्यावदान और ललितविस्तार: महायान साहित्य, बुद्ध के जीवन और चमत्कारों का वर्णन।
  • बौद्ध धर्म साहित्य में, मुख्यतः पाली भाषा में लिखे गए "त्रिपिटक" (तिपिटक) को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह तीन भागों में विभाजित है: सुत्त पिटक, विनय पिटक, और अभिधम्म पिटक। इसके अलावा, महायान बौद्ध धर्म के साहित्य में ललित विस्तर, अवंतस सूत्र, और सदम मर्ण पुंडरीक सूत्र महत्वपूर्ण हैं. 
    त्रिपिटक (तिपिटक):
    • सुत्त पिटक:
      बुद्ध के उपदेशों का संग्रह, जिसमें विभिन्न सूत्र (सुत्त) शामिल हैं। 
    • विनय पिटक:
      भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आचरण और अनुशासन के नियम। 
    • अभिधम्म पिटक:
      बौद्ध धर्म के दार्शनिक सिद्धांतों का व्याख्यात्मक विश्लेषण। 
    अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ:
    • ललित विस्तर:
      बुद्ध की जीवनी और उनके teachings पर आधारित, जिसके लेखक हरिभक्त है. 
    • अवंतस सूत्र:
      बुद्ध के जीवन और teachings पर केंद्रित एक महायान सूत्र. 
    • सदम मर्ण पुंडरीक सूत्र:
      एक महत्वपूर्ण महायान सूत्र. 
    • दिव्यावदान:
      बुद्ध की जीवनी और बौद्ध धर्म के इतिहास से संबंधित एक ग्रंथ। 
    • दीपवंश, महावंश:
      बौद्ध धर्म के इतिहास से संबंधित श्रीलंका के ग्रंथ। 
    • मिलिंद पन्हा:
      राजा मिलिंद (मिंदस) और बौद्ध भिक्षु नागसेन के बीच हुए संवाद का विवरण। 
    • मनुजश्री मूलकल्प:
      एक अन्य महत्वपूर्ण महायान ग्रंथ. 
    • बुद्धचरित:
      बुद्ध की जीवनी पर आधारित एक महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य, जिसके लेखक अश्वघोष है।

(ii) संभावित प्रश्न

  1. त्रिपिटक की संरचना और महत्व क्या है?
    • उत्तर: त्रिपिटक बौद्ध धर्म का मूल ग्रंथ है, जिसमें विनय, सुत्त और अभिधम्म पिटक शामिल हैं। यह बुद्ध की शिक्षाओं, अनुशासन और दर्शन का संकलन है, जो प्राचीन भारत की धार्मिक और सामाजिक स्थिति को समझने में सहायक है।
  2. जातक कथाएँ बौद्ध धर्म में नैतिकता को कैसे दर्शाती हैं?
    • उत्तर: जातक कथाएँ बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ हैं, जो अहिंसा, करुणा, और कर्म के सिद्धांतों को नैतिक कहानियों के माध्यम से समझाती हैं।
  3. मिलिंदपन्हो का ऐतिहासिक और दार्शनिक महत्व क्या है?
    • उत्तर: मिलिंदपन्हो में राजा मेनेंडर और नागसेन के संवाद हैं, जो बौद्ध दर्शन (अनात्मवाद, कर्म) की तर्कसंगत व्याख्या करते हैं। यह इंडो-ग्रीक और बौद्ध संस्कृति के मेल का प्रमाण है।
  4. बौद्ध साहित्य में महायान और हीनयान का योगदान।
    • उत्तर: महायान साहित्य (ललितविस्तार, प्रज्ञापारमिता) में बुद्ध को दैवीय रूप में चित्रित किया गया, जबकि हीनयान (त्रिपिटक) मूल शिक्षाओं पर केंद्रित है।

4. बौद्ध वास्तुकला में योगदान

बौद्ध वास्तुकला बुद्ध की शिक्षाओं और उनके जीवन से प्रेरित है। यह भारतीय कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ प्रमुख वास्तुशिल्प रूपों का वर्णन है, जिन्हें सचित्र समझने के लिए टेक्स्ट में विवरण दिया गया है:

(i) स्तूप

  • विवरण: गोलाकार, गुंबदनुमा संरचना, जो बुद्ध के अवशेषों या पवित्र वस्तुओं को संरक्षित करती है। यह ध्यान और तीर्थाटन का केंद्र है।
  • संरचना:
    • गुंबद (अंड): ब्रह्मांड का प्रतीक।
    • हर्मिका: वर्गाकार मंच, यज्ञवेदी का प्रतीक।
    • छत्रावली: शीर्ष पर छत्र, आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक।
    • वेदिका: परिक्रमा के लिए चारों ओर रेलिंग।
  • उदाहरण:
    • साँची स्तूप (मध्य प्रदेश): सम्राट अशोक द्वारा निर्मित, तीसरी सदी ई.पू.। इसके तोरणद्वार पर बुद्ध के जीवन की घटनाएँ (जातक कथाएँ) उत्कीर्ण हैं। विवरण: तोरणद्वार पर बुद्ध को प्रतीकात्मक रूप में (पदचिह्न, बोधि वृक्ष) दर्शाया गया है।
    • अमरावती स्तूप (आंध्र प्रदेश): दूसरी सदी ई.पू., बारीक नक्काशी और बुद्ध की जीवनी चित्रित।
  • महत्व: स्तूप बौद्ध धर्म के प्रसार और सामुदायिक एकता का प्रतीक हैं।

(ii) चैत्य

  • विवरण: प्रार्थना और ध्यान के लिए गुफा-मंदिर, जिनमें स्तूप होता है।
  • संरचना:
    • लंबा, अर्धवृत्ताकार हॉल (अप्सरा के आकार का)।
    • छत पर मेहराबदार डिज़ाइन, लकड़ी की नकल में।
    • अंत में स्तूप, जो पूजा का केंद्र।
  • उदाहरण:
    • कार्ले चैत्य (महाराष्ट्र): पहली सदी ई.पू., विशाल स्तंभों और नक्काशी के साथ।
    • भाजा और अजंता चैत्य: बुद्ध की मूर्तियाँ और चित्रकारी।
  • महत्व: चैत्य भिक्षुओं के लिए सामूहिक प्रार्थना स्थल थे।

(iii) विहार

  • विवरण: भिक्षुओं के निवास और शिक्षा के लिए मठ। ये आयताकार संरचनाएँ होती थीं।
  • संरचना:
    • केंद्रीय प्रांगण, चारों ओर कक्ष।
    • प्रवेश द्वार पर अलंकृत नक्काशी।
  • उदाहरण:
    • नालंदा और तक्षशिला: विश्वविद्यालय के रूप में विहार, शिक्षा केंद्र।
    • अजंता और एलोरा: गुफा-विहार, चित्रकला और मूर्तिकला के साथ।
  • महत्व: विहार बौद्ध शिक्षा और संस्कृति के प्रसार के केंद्र थे।

(iv) बुद्ध मूर्तियाँ और प्रतीक

  • विवरण: बुद्ध को प्रारंभ में प्रतीकों (पदचिह्न, बोधि वृक्ष, धर्मचक्र) के रूप में दर्शाया गया। बाद में (मथुरा और गांधार शैली) में मानव रूप में मूर्तियाँ बनीं।
  • उदाहरण:
    • गांधार शैली: यूनानी प्रभाव, बुद्ध की यथार्थवादी मूर्तियाँ।
    • मथुरा शैली: भारतीय शैली, मजबूत और आध्यात्मिक चित्रण।
    • सारनाथ की बुद्ध मूर्ति: धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में, पाँचवीं सदी ई.।
  • महत्व: ये मूर्तियाँ और प्रतीक बौद्ध धर्म के वैश्विक प्रसार का माध्यम बने।

 बौद्ध वास्तुकला का प्रभाव

  • सामाजिक प्रभाव: बौद्ध वास्तुकला ने सामुदायिक एकता और तीर्थाटन को बढ़ावा दिया।
  • सांस्कृतिक प्रभाव: अजंता-एलोरा की चित्रकला और मूर्तिकला भारतीय कला की उत्कृष्टता दर्शाती हैं।
  • वैश्विक प्रभाव: श्रीलंका, थाईलैंड, चीन आदि में बौद्ध वास्तुकला का प्रसार हुआ।

5. UPSC के लिए महत्व

  • इतिहास: बुद्ध का जीवन और बौद्ध धर्म का प्रसार प्राचीन भारत के सामाजिक-धार्मिक परिवर्तनों को समझने में सहायक।
  • संस्कृति: बौद्ध वास्तुकला (स्तूप, चैत्य, विहार) और साहित्य (त्रिपिटक, जातक) भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।
  • दर्शन: बुद्ध की शिक्षाएँ (चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग) दर्शनशास्त्र और नैतिकता पेपर के लिए प्रासंगिक।
  • विश्व इतिहास: बौद्ध धर्म का एशिया में प्रसार और सम्राट अशोक की भूमिका।