वक्ति के लिए जो सर्वश्रेष्ठ है, आवश्यक नहीं समाज के लिए भी हो! "UPSC CSE ESSAY MAINS PYQ 2019-SEC-A

 

वक्ति के लिए जो सर्वश्रेष्ठ है, आवश्यक नहीं समाज के लिए भी हो




मानव सभ्यता का आधार व्यक्ति और समाज के बीच के जटिल और गतिशील संबंधों पर टिका है। व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता, आत्म-साक्षात्कार और व्यक्तिगत आकांक्षाओं की खोज में रहता है, जबकि समाज सामूहिक कल्याण, व्यवस्था और सामंजस्य की मांग करता है। यह निबंध इस द्वंद्व को दार्शनिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोणों से विश्लेषित करता है। इसमें भारतीय श्लोक, दार्शनिक उद्धरण, वैज्ञानिक उपलब्धियाँ, और समकालीन उदाहरण शामिल हैं, जो इसे एक काव्यात्मक, विवेचनात्मक और लक्ष्य के अनुरूप आदर्श निबंध बनाते हैं।

1. दार्शनिक दृष्टिकोण: स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का द्वंद्व

वक्ति और समाज के बीच का तनाव प्राचीन काल से विचारकों के लिए चिंतन का विषय रहा है। प्राचीन यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने इस संदर्भ में कहा:

“मनुष्य सामाजिक प्राणी है, और उसकी स्वतंत्रता समाज के बंधनों में ही सार्थक होती है।”

यह कथन व्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति व्यक्तिगत लाभ के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त होता है, जैसे सरकारी धन का दुरुपयोग, तो यह समाज के लिए हानिकारक होता है।

आधुनिक दार्शनिक जॉन स्टुअर्ट मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देते हुए कहा:

“स्वतंत्रता का अर्थ केवल वह करना नहीं है जो आप चाहते हैं, बल्कि वह है जो दूसरों को हानि न पहुँचाए।”

मिल का यह विचार व्यक्ति की स्वतंत्रता को सामाजिक कल्याण के साथ जोड़ता है। उदाहरण के लिए, एक उद्यमी अपनी कंपनी का विस्तार कर सकता है, लेकिन यदि यह पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी करता है, तो समाज को नुकसान होता है।

  • वक्तिगत स्वतंत्रता: स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन यह सामाजिक नैतिकता के अधीन होनी चाहिए।
  • उदाहरण: 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट, जहां कुछ व्यक्तियों की लालच ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को संकट में डाला।
  • विश्लेषण: व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग सामाजिक विश्वास और स्थिरता को कमजोर करता है।

2. भारतीय दर्शन और संस्कृत श्लोक: निष्काम कर्म की प्रेरणा

भारतीय दर्शन में व्यक्ति और समाज के बीच संतुलन को गहराई से समझाया गया है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं:

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।”

यह श्लोक निष्काम कर्म की अवधारणा को दर्शाता है, जो व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करने और समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने की प्रेरणा देता है। यह व्यक्ति को स्वार्थ से मुक्त होकर समाज के लिए कार्य करने का आह्वान करता है।

स्वामी विवेकानंद ने इस विचार को और स्पष्ट किया:

“प्रत्येक आत्मा संभावित रूप से दिव्य है। लक्ष्य है इसे प्रकट करना, बाहरी और आंतरिक प्रकृति पर नियंत्रण द्वारा।”

वेदों में भी इस संतुलन को रेखांकित किया गया है:

“सर्वं विश्वेन संनादति।”

यह श्लोक व्यक्ति और विश्व की एकता को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाकर समाज में स्वराज की स्थापना की। इसी तरह, सरदार वल्लभभाई पटेल ने व्यक्तिगत बलिदान के माध्यम से भारत के एकीकरण में योगदान दिया।

  • निष्काम कर्म: व्यक्ति को अपने कार्यों को समाज के कल्याण के साथ जोड़ना चाहिए।
  • उदाहरण: रानी लक्ष्मीबाई ने व्यक्तिगत साहस के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।
  • विश्लेषण: भारतीय दर्शन व्यक्ति को समाज के साथ जोड़कर आत्म-विकास और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन बनाता है।

3. सांस्कृतिक दृष्टिकोण: परंपरा और व्यक्तिवाद

भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को परिवार और समाज का अभिन्न अंग माना जाता है। फिर भी, आधुनिक युग में व्यक्तिवाद का उदय हुआ है, जो परंपरागत सामूहिकता को चुनौती देता है। रवींद्रनाथ टैगोर ने इस संदर्भ में कहा:

“सच्ची स्वतंत्रता वह है, जो व्यक्ति को समाज के साथ जोड़े और आत्मिक विकास प्रदान करे।”

भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार की परंपरा व्यक्ति को सामाजिक जिम्मेदारियों से जोड़ती है, लेकिन आधुनिक शहरीकरण ने एकल परिवारों को बढ़ावा दिया है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ाता है, लेकिन सामाजिक बंधनों को कमजोर करता है।

उदाहरण के लिए, भारतीय त्योहार, जैसे दीवाली और होली, सामूहिकता को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, कुछ लोग व्यक्तिगत सुविधा के लिए पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी करते हैं, जैसे पटाखों का उपयोग, जो सामाजिक और पर्यावरणीय हानि का कारण बनता है।

  • सांस्कृतिक संतुलन: भारतीय संस्कृति व्यक्ति को सामाजिकता से जोड़ती है, लेकिन व्यक्तिवाद इसे चुनौती देता है।
  • उदाहरण: संयुक्त परिवार की परंपरा सामाजिक बंधनों को मजबूत करती है।
  • विश्लेषण: व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सांस्कृतिक मूल्यों का सामंजस्य सामाजिक एकता के लिए आवश्यक है।

4. वैज्ञानिक उपलब्धियाँ और सामाजिक प्रभाव

वैज्ञानिक उपलब्धियाँ व्यक्तिगत प्रतिभा का परिणाम होती हैं, लेकिन उनका प्रभाव समाज पर पड़ता है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने व्यक्तिगत वैज्ञानिक उत्कृष्टता के माध्यम से भारत के मिसाइल कार्यक्रम को सशक्त किया, जो समाज और राष्ट्र के लिए लाभकारी था।

हालांकि, कुछ वैज्ञानिक उपलब्धियाँ, जैसे परमाणु हथियारों का विकास, व्यक्तिगत उपलब्धि होने के बावजूद समाज के लिए खतरा बन सकती हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन ने इस संदर्भ में कहा:

“विज्ञान एक सुंदर उपहार है, जब तक इसका उपयोग मानवता के लिए किया जाता है।”

भारत में कोविड-19 वैक्सीन का विकास, जैसे कोविशील्ड और कोवैक्सिन, व्यक्तिगत वैज्ञानिक प्रयासों और सामाजिक कल्याण का संगम था। यह दर्शाता है कि व्यक्तिगत उपलब्धियाँ समाज को सशक्त कर सकती हैं, बशर्ते उनका उपयोग नैतिक हो।

  • वैज्ञानिक प्रगति: व्यक्तिगत उपलब्धियाँ समाज को सशक्त कर सकती हैं, लेकिन गलत उपयोग हानिकारक हो सकता है।
  • उदाहरण: चंद्रयान मिशन ने व्यक्तिगत वैज्ञानिक प्रतिभा को राष्ट्रीय गौरव से जोड़ा।
  • विश्लेषण: वैज्ञानिक नवाचारों का सामाजिक प्रभाव उनके नैतिक उपयोग पर निर्भर करता है।

5. आधुनिक संदर्भ: वैश्वीकरण और तकनीकी प्रभाव

आधुनिक युग में, वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति ने व्यक्ति और समाज के बीच के संबंध को जटिल बना दिया है। सोशल मीडिया ने व्यक्तियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है, लेकिन गलत सूचनाएँ सामाजिक ध्रुवीकरण का कारण बनती हैं।

उदाहरण के लिए, #MeToo आंदोलन ने व्यक्तिगत कहानियों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा दिया, लेकिन फर्जी खबरों ने सामाजिक अस्थिरता को जन्म दिया। एलन मस्क ने इस संदर्भ में कहा:

“तकनीक एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसका उपयोग समाज के मूल्यों के साथ संतुलित होना चाहिए।”

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का विकास व्यक्तिगत नवाचार का प्रतीक है, लेकिन इसके दुरुपयोग, जैसे निगरानी और गोपनीयता उल्लंघन, ने सामाजिक चिंताएँ बढ़ाई हैं।

  • तकनीकी प्रभाव: तकनीक ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ाया, लेकिन सामाजिक एकता को चुनौती दी है।
  • उदाहरण: डेटा गोपनीयता उल्लंघन ने व्यक्तिगत लाभ के लिए सामाजिक विश्वास को कमजोर किया।
  • विश्लेषण: तकनीकी प्रगति का सामाजिक प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कैसे किया जाता है।

6. आर्थिक दृष्टिकोण: पूंजीवाद और असमानता

आर्थिक क्षेत्र में, व्यक्ति और समाज के बीच का तनाव स्पष्ट है। कार्ल मार्क्स ने पूंजीवाद की आलोचना करते हुए कहा:

“पूंजी का लक्ष्य केवल व्यक्तिगत लाभ है, न कि सामाजिक कल्याण।”

भारत में कुछ कॉरपोरेट्स ने पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी की, जिससे सामाजिक और पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हुआ। दूसरी ओर, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व पहल, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य परियोजनाएँ, व्यक्तिगत लाभ को सामाजिक कल्याण से जोड़ने का प्रयास करती हैं।

ग्रामीण-शहरी आर्थिक खाई इस असंतुलन को दर्शाती है। व्यक्तिगत धन संचय ने कुछ लोगों को समृद्ध किया, लेकिन सामाजिक असमानता को बढ़ाया। उदाहरण के लिए, भारत में मध्यम वर्ग का उदय व्यक्तिगत सफलता का प्रतीक है, लेकिन गरीबी उन्मूलन अभी भी एक चुनौती है।

  • आर्थिक असमानता: व्यक्तिगत धन संचय सामाजिक असमानता को बढ़ा सकता है।
  • उदाहरण: भारत में स्टार्टअप संस्कृति ने व्यक्तिगत उद्यमिता को बढ़ावा दिया, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में विकास सीमित रहा।
  • विश्लेषण: आर्थिक नीतियों को व्यक्तिगत और सामाजिक लाभ के बीच संतुलन बनाना चाहिए।

7. राजनीतिक दृष्टिकोण: व्यक्तिगत अधिकार और सामाजिक कर्तव्य

राजनीतिक क्षेत्र में, व्यक्ति के अधिकार और सामाजिक कर्तव्यों के बीच संतुलन महत्वपूर्ण है। भारतीय संविधान व्यक्तिगत अधिकारों, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, को संरक्षण देता है, लेकिन यह सामाजिक कर्तव्यों, जैसे पर्यावरण संरक्षण, को भी रेखांकित करता है।

उदाहरण के लिए, मतदान का अधिकार व्यक्ति को सशक्त बनाता है, लेकिन मतदान करना एक सामाजिक कर्तव्य भी है। यदि व्यक्ति केवल अपने हितों के लिए मतदान करता है, जैसे क्षेत्रीय या जातिगत आधार पर, तो यह सामाजिक एकता को कमजोर करता है।

“लोकतंत्र में व्यक्ति की शक्ति समाज की शक्ति बनती है, बशर्ते वह जिम्मेदारी से उपयोग हो।” – बी.आर. आंबेडकर

  • राजनीतिक संतुलन: व्यक्तिगत अधिकार सामाजिक कर्तव्यों के साथ संतुलित होने चाहिए।
  • उदाहरण: जन आंदोलनों, जैसे चिपको आंदोलन, ने व्यक्तिगत सक्रियता को सामाजिक कल्याण से जोड़ा।
  • विश्लेषण: लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यक्ति और समाज की जिम्मेदारियाँ परस्पर जुड़ी हैं।

8. पर्यावरणीय दृष्टिकोण: व्यक्तिगत कार्य और सामूहिक प्रभाव

पर्यावरणीय संकट व्यक्ति और समाज के बीच असंतुलन का एक प्रमुख उदाहरण है। व्यक्तिगत स्तर पर सुविधा, जैसे प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती है।

उदाहरण के लिए, भारत में गंगा सफाई अभियान व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाता है। यदि व्यक्ति जल प्रदूषण में योगदान देता है, तो यह सामाजिक और पर्यावरणीय हानि का कारण बनता है।

“आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।”

यह वैदिक श्लोक विश्व भर से श्रेष्ठ विचारों को अपनाने की प्रेरणा देता है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए भी लागू होता है।

  • पर्यावरणीय जिम्मेदारी: व्यक्तिगत कार्य सामूहिक पर्यावरणीय प्रभाव को निर्धारित करते हैं।
  • उदाहरण: वृक्षारोपण अभियान व्यक्तिगत योगदान को सामाजिक कल्याण से जोड़ता है।
  • विश्लेषण: पर्यावरण संरक्षण में व्यक्ति और समाज की साझा जिम्मेदारी आवश्यक है।

9. निष्कर्ष: काव्यात्मक संतुलन

वक्ति और समाज एक सिक्के के दो पहलू हैं। व्यक्ति की स्वतंत्रता और आकांक्षाएँ महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें समाज के कल्याण के साथ संतुलित करना आवश्यक है। भारतीय दर्शन, वैज्ञानिक उपलब्धियाँ, सांस्कृतिक मूल्य, और आधुनिक चुनौतियाँ यह दर्शाती हैं कि व्यक्ति का विकास समाज के बिना अधूरा है।

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।”

यह श्लोक समाज में नारी सम्मान को रेखांकित करता है, जो व्यक्ति और समाज के बीच सामंजस्य का प्रतीक है। काव्यात्मक रूप से कहा जाए, तो व्यक्ति एक नदी है और समाज उसका सागर; दोनों का मिलन ही सृष्टि की सार्थकता है।

रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा:

“मानवता की सच्ची प्रगति तब होती है, जब व्यक्ति और समाज एक-दूसरे को सशक्त करते हैं।”

अंत में, हमें एक ऐसी व्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए, जहां व्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज का कल्याण परस्पर सशक्त हों। यह संतुलन ही मानव सभ्यता की प्रगति का आधार है।