राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के आधार पर स्वास्थ्य और लैंगिक असमानता की रिपोर्ट
परिचय
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) भारत में स्वास्थ्य, पोषण, परिवार नियोजन, और सामाजिक संकेतकों का आकलन करने वाला एक महत्वपूर्ण सर्वेक्षण है। यह 2019-21 के बीच आयोजित किया गया था और इसमें 6,36,699 परिवारों का सैंपल शामिल था। NFHS-5 में प्रजनन स्वास्थ्य, मातृ और शिशु स्वास्थ्य, पोषण, एनीमिया, और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर डेटा एकत्र किया गया। यह रिपोर्ट NFHS-5 के प्रमुख निष्कर्षों, भारत और राज्यों की स्थिति, लैंगिक असमानता, तलाक की प्रवृत्ति, और भविष्य के लिए इसके लाभ और हानियों का विश्लेषण करती है।
भारत की स्थिति: NFHS-5 के प्रमुख आंकड़े
NFHS-5 के अनुसार, भारत में स्वास्थ्य और सामाजिक संकेतकों में कुछ प्रगति देखी गई है, लेकिन कई क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है।
प्रजनन स्वास्थ्य और परिवार नियोजन
- कुल प्रजनन दर (TFR): 2.0 (NFHS-4 में 2.2 थी), जो प्रतिस्थापन स्तर पर आ गई है।
- गर्भनिरोधक उपयोग: 66.7% महिलाएँ आधुनिक गर्भनिरोधक विधियों का उपयोग करती हैं (NFHS-4 में 53.5%)।
- किशोर गर्भावस्था: 15-19 आयु वर्ग की 6.8% लड़कियाँ गर्भवती थीं या माँ बन चुकी थीं।
मातृ और शिशु स्वास्थ्य
- संस्थागत प्रसव: 88.6% प्रसव अस्पतालों में हुए (NFHS-4 में 78.9%)।
- शिशु मृत्यु दर (IMR): 35.2 प्रति 1,000 जीवित जन्म (NFHS-4 में 40.7)।
- पूर्ण टीकाकरण: 12-23 महीने के 76.6% बच्चों को पूर्ण टीकाकरण प्राप्त हुआ।
पोषण और एनीमिया
- बच्चों में कुपोषण: 5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित (stunted) हैं (NFHS-4 में 38.4%)।
- महिलाओं में एनीमिया: 15-49 आयु वर्ग की 57% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं (NFHS-4 में 53%)।
- पुरुषों में एनीमिया: 25% पुरुष एनीमिया से प्रभावित हैं।
लिंगानुपात और लैंगिक असमानता
- जन्म के समय लिंगानुपात: 929 महिलाएँ प्रति 1,000 पुरुष (NFHS-4 में 919)।
- महिलाओं की शिक्षा: 15-49 आयु वर्ग की 41% महिलाओं ने 10 या अधिक वर्ष की शिक्षा प्राप्त की।
- घरेलू हिंसा: 29.3% विवाहित महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया।
राज्य-वार स्थिति
NFHS-5 के डेटा के अनुसार, राज्यों में स्वास्थ्य और लैंगिक असमानता की स्थिति में भिन्नता है।
केरल
- TFR: 1.6, सबसे कम प्रजनन दर।
- संस्थागत प्रसव: 99.8%, लगभग सभी प्रसव अस्पतालों में।
- महिलाओं में एनीमिया: 36.3%, राष्ट्रीय औसत से बेहतर।
- लिंगानुपात: 964 महिलाएँ प्रति 1,000 पुरुष, संतुलित।
उत्तर प्रदेश
- TFR: 2.4, राष्ट्रीय औसत से अधिक।
- संस्थागत प्रसव: 83.4%, सुधार हुआ लेकिन कमी बनी हुई।
- महिलाओं में एनीमिया: 65.7%, गंभीर स्थिति।
- लिंगानुपात: 908 महिलाएँ प्रति 1,000 पुरुष, असंतुलित।
हरियाणा
- TFR: 1.9, प्रतिस्थापन स्तर से नीचे।
- संस्थागत प्रसव: 91.3%, अच्छी प्रगति।
- महिलाओं में एनीमिया: 61.5%, चिंताजनक।
- लिंगानुपात: 916 महिलाएँ प्रति 1,000 पुरुष, सुधार लेकिन कमी।
महाराष्ट्र
- TFR: 1.7, कम प्रजनन दर।
- संस्थागत प्रसव: 94.2%, उच्च स्तर।
- महिलाओं में एनीमिया: 54%, राष्ट्रीय औसत के करीब।
- लिंगानुपात: 938 महिलाएँ प्रति 1,000 पुरुष, मध्यम सुधार।
प्राचीन युग बनाम आधुनिक युग: लिंगानुपात और रिश्तों की तुलना
प्राचीन युग
- लिंगानुपात: प्राचीन भारत में लिंगानुपात असंतुलित था, विशेष रूप से कन्या भ्रूण हत्या और सामाजिक रूढ़ियों के कारण।
- रिश्तों की स्थिरता: तलाक की दर नगण्य थी। सामाजिक और धार्मिक मानदंडों के कारण विवाह टूटना असामान्य था, भले ही रिश्तों में असमानता हो।
आधुनिक युग (NFHS-5 और अन्य स्रोतों के आधार पर)
- लिंगानुपात: NFHS-5 के अनुसार, जन्म के समय लिंगानुपात 929:1000 है, जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों के कारण सुधरा है।
- तलाक की प्रवृत्ति: NFHS-5 में तलाक के विशिष्ट आंकड़े नहीं हैं, लेकिन अन्य स्रोतों (MoSPI, 2023) के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में तलाक की दर 1.1% और ग्रामीण क्षेत्रों में 0.6% है।
- रिश्तों की चुनौतियाँ: आधुनिक युग में शहरीकरण, आर्थिक दबाव, और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने रिश्तों में तनाव बढ़ाया है। NFHS-5 में 29.3% महिलाओं ने घरेलू हिंसा की सूचना दी, जो रिश्तों में समस्याओं को दर्शाता है।
लाभ और हानियाँ
लाभ
- महिलाओं का सशक्तिकरण: लिंगानुपात में सुधार (929:1000) और शिक्षा में प्रगति (41% महिलाओं ने 10+ वर्ष की शिक्षा) से महिलाएँ अधिक स्वतंत्र हो रही हैं।
- स्वास्थ्य सुधार: संस्थागत प्रसव (88.6%) और टीकाकरण (76.6%) में वृद्धि से मातृ और शिशु स्वास्थ्य बेहतर हुआ है।
- आर्थिक योगदान: परिवार नियोजन और कम TFR (2.0) से महिलाओं की कार्यबल भागीदारी बढ़ सकती है, जिससे GDP में 20-25% वृद्धि संभव है।
हानियाँ
- पोषण और एनीमिया: बच्चों में कुपोषण (35.5%) और महिलाओं में एनीमिया (57%) गंभीर चुनौतियाँ हैं।
- घरेलू हिंसा और तलाक: 29.3% महिलाओं द्वारा घरेलू हिंसा और तलाक की बढ़ती दर से सामाजिक अस्थिरता बढ़ सकती है।
- क्षेत्रीय असमानता: उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में खराब लिंगानुपात (908:1000) और स्वास्थ्य संकेतक राष्ट्रीय प्रगति को सीमित करते हैं।
परीक्षा के लिए उपयोगिता
NFHS-5 का डेटा UPSC, SSC, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए सामाजिक विज्ञान, सामान्य अध्ययन, और निबंध लेखन में उपयोगी है।
उपयोगी बिंदु
- आंकड़े: TFR (2.0), लिंगानुपात (929:1000), एनीमिया (57% महिलाएँ), और संस्थागत प्रसव (88.6%) जैसे तथ्य उत्तरों को मजबूत करते हैं।
- राज्य-वार तुलना: केरल, उत्तर प्रदेश, और हरियाणा जैसे राज्यों के डेटा का उपयोग तुलनात्मक विश्लेषण के लिए करें।
- नीति विश्लेषण: आयुष्मान भारत, राष्ट्रीय पोषण मिशन, और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं का उल्लेख करें।
- सामाजिक मुद्दे: कुपोषण, घरेलू हिंसा, और तलाक जैसे विषय सामाजिक अध्ययन के लिए प्रासंगिक हैं।
तैयारी के लिए टिप्स
- आंकड़ों को याद करें: प्रमुख संकेतक जैसे TFR, IMR, और लिंगानुपात को रटें।
- निबंध लेखन: स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, और सामाजिक परिवर्तन पर निबंध लिखने का अभ्यास करें।
- वर्तमान उदाहरण: NFHS-5 के डेटा के साथ सरकारी योजनाओं को जोड़ें।
- मॉक टेस्ट: NFHS-5 आधारित प्रश्नों का अभ्यास करें।
निष्कर्ष
NFHS-5 के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत ने प्रजनन स्वास्थ्य, मातृ और शिशु स्वास्थ्य, और लिंगानुपात में प्रगति की है, लेकिन कुपोषण, एनीमिया, और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर ध्यान देना होगा। लिंगानुपात में सुधार और तलाक की बढ़ती दर सामाजिक परिवर्तन को दर्शाते हैं, जो भविष्य में अवसर और चुनौतियाँ दोनों लाएंगे। नीति-निर्माताओं को क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिए।