*नैतिक विचारकों और
दार्शनिकों का योगदान: भारत और विश्व
नैतिकता और दर्शनशास्त्र
मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण
हिस्सा रहे हैं, जो समाज, शासन और व्यक्तिगत जीवन में नैतिकता और मूल्यों को आकार देने में सहायक हैं। यूपीएससी मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन पेपर IV के लिए, भारत और विश्व के प्रमुख नैतिक विचारकों और दार्शनिकों के योगदान को समझना महत्वपूर्ण
है। यहाँ कुछ प्रमुख विचारकों
और उनके योगदानों
का हिंदी में वर्णन किया गया है, जो नैतिकता के सैद्धांतिक
और व्यावहारिक पहलुओं को दर्शाता है।
भारतीय नैतिक विचारक और दार्शनिक
1. महात्मा गांधी
योगदान: गांधीजी ने सत्य, अहिंसा, स्वराज, सर्वोदय और स्वदेशी जैसे सिद्धांतों के माध्यम से नैतिक और राजनीतिक दर्शन को समृद्ध किया। उनका सत्याग्रह (Satyagraha) सिद्धांत नैतिकता और साहस पर आधारित अहिंसक प्रतिरोध
का प्रतीक है, जिसने भारत को स्वतंत्रता
दिलाने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई। सर्वोदय (सभी का उत्थान) सामाजिक कल्याण और समानता पर केंद्रित है। गांधीजी ने
"हिंद स्वराज" में पश्चिमी भौतिकवादी संस्कृति
की आलोचना की और नैतिकता को सामाजिक जीवन का आधार बताया।
प्रासंगिकता: गांधीजी के सिद्धांत
आज भी भ्रष्टाचार, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों से निपटने के लिए प्रासंगिक
हैं। यूपीएससी केस स्टडी में उनके विचार नैतिक निर्णय लेने में उपयोगी हैं।
2. स्वामी विवेकानंद
योगदान: स्वामी विवेकानंद ने अद्वैत वेदांत के दर्शन को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया और हिंदू आध्यात्मिकता को वैश्विक मंच पर स्थापित किया। उन्होंने
मानव सेवा को ईश्वर की पूजा माना और युवाओं को आत्म-साक्षात्कार और समाज सेवा के लिए प्रेरित किया। उनके चार योग—ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राज योग—नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
प्रासंगिकता: उनके विचार व्यक्तिगत
विकास, सामाजिक एकता और वैश्विक भाईचारे के लिए प्रेरणादायक
हैं, जो यूपीएससी
के नैतिकता पेपर में नेतृत्व और सेवा से संबंधित प्रश्नों के लिए उपयोगी हैं।
3. आदि शंकराचार्य
योगदान: आदि शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत दर्शन की स्थापना की, जो यह सिखाता है कि विश्व केवल एक ही सत्य (ब्रह्म) की अभिव्यक्ति है और माया (भ्रम) के कारण हम इसे भिन्न देखते हैं। उन्होंने वेदों और उपनिषदों
की प्रामाणिकता को पुनर्जनन दिया और चार मठों (शृंगेरी, द्वारका, पुरी, जोशीमठ) की स्थापना की।
प्रासंगिकता: उनकी शिक्षाएँ आत्म-जांच और नैतिक जीवन के लिए प्रेरणा देती हैं, जो यूपीएससी में दार्शनिक और आध्यात्मिक नैतिकता के प्रश्नों
के लिए उपयोगी हैं।
4. चाणक्य
योगदान: चाणक्य (कौटिल्य) ने अर्थशास्त्र में शासन, नीति और नैतिकता पर गहन विचार प्रस्तुत
किए। उनका दर्शन यथार्थवादी और व्यावहारिक था, जिसमें उन्होंने
शासक के लिए धार्मिकता (धर्म) और कर्तव्य (कर्तव्य) को महत्व दिया। उन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रासंगिकता: चाणक्य के विचार शासन, नेतृत्व और नीति निर्माण में नैतिकता के लिए प्रासंगिक
हैं, जो यूपीएससी
में प्रशासनिक नैतिकता के प्रश्नों
के लिए उपयोगी हैं।
5. गौतम बुद्ध
योगदान: गौतम बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग (सही दृष्टि, संकल्प, वाणी, कर्म, आजीविका, प्रयास, स्मृति, समाधि) के माध्यम से दुख के कारणों और मुक्ति के मार्ग को समझाया। उन्होंने
अहिंसा, करुणा और मध्यम मार्ग पर जोर दिया।
प्रासंगिकता: बुद्ध के सिद्धांत
सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण
संरक्षण और व्यक्तिगत
नैतिकता के लिए प्रासंगिक हैं, जो यूपीएससी
के नैतिकता पेपर में उपयोगी हैं।
6. राजा राममोहन राय
योगदान: राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की और सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों
के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने
तर्कसंगतता, मानवतावाद और सामाजिक सुधार पर जोर दिया।
प्रासंगिकता: उनके विचार सामाजिक न्याय और सुधार के लिए प्रासंगिक
हैं, जो यूपीएससी
में सामाजिक नैतिकता से संबंधित प्रश्नों के लिए उपयोगी हैं।
विश्व के नैतिक विचारक और दार्शनिक
1. सुकरात
योगदान: सुकरात को पश्चिमी दर्शन का जनक माना जाता है। उनकी सोक्रेटिक
पद्धति (प्रश्न-उत्तर विधि) ने नैतिकता और आत्म-जांच को बढ़ावा दिया। उन्होंने
इस बात पर जोर दिया कि "अनपरीक्षित जीवन जीने योग्य नहीं है।"
प्रासंगिकता: उनकी शिक्षाएँ नैतिक निर्णय लेने और आत्म-चिंतन के लिए महत्वपूर्ण
हैं, जो यूपीएससी
केस स्टडी में उपयोगी हैं।
2. अरस्तू
योगदान: अरस्तू ने सद्गुण नैतिकता (Virtue Ethics) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें मध्यम मार्ग (Golden Mean) पर जोर दिया। उन्होंने
साहस, न्याय और संयम जैसे गुणों को नैतिक जीवन का आधार माना।
प्रासंगिकता: अरस्तू का मध्यम मार्ग नैतिक संतुलन और नेतृत्व के लिए प्रासंगिक
है, जो यूपीएससी
में प्रशासनिक और व्यक्तिगत नैतिकता के लिए उपयोगी है।
3. इम्मैनुएल कांत
योगदान: कांत ने कटेगोरिकल
इम्पेरेटिव
(Categorical Imperative) की अवधारणा प्रस्तुत की, जो कहती है कि नैतिक कार्य वह है जो सार्वभौमिक
नियम बन सके। उन्होंने कर्तव्य और स्वायत्तता
पर आधारित नैतिकता को महत्व दिया।
प्रासंगिकता: कांत का दर्शन नैतिक सिद्धांतों
और कर्तव्य-आधारित निर्णय लेने के लिए प्रासंगिक है, जो यूपीएससी
में नैतिक दुविधाओं
के विश्लेषण में उपयोगी है।
4. जॉन स्टुअर्ट मिल
योगदान: मिल ने उपयोगितावाद
(Utilitarianism) का समर्थन किया, जिसमें कार्यों की नैतिकता उनके परिणामों (अधिकतम सुख) पर आधारित होती है। उनकी पुस्तक "ऑन लिबर्टी"
व्यक्तिगत
स्वतंत्रता
और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर देती है।
प्रासंगिकता: उपयोगितावाद
नीति निर्माण और सामाजिक कल्याण के लिए प्रासंगिक है, जो यूपीएससी
में नीतिगत नैतिकता के प्रश्नों
के लिए उपयोगी है।
5. कार्ल मार्क्स
योगदान: मार्क्स ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक नैतिकता पर जोर दिया। उनकी पुस्तक "कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो"
और
"दास कैपिटल" में पूंजीपतियों
और श्रमिक वर्ग के बीच संघर्ष पर प्रकाश डाला।
प्रासंगिकता: मार्क्स के विचार सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता के लिए प्रासंगिक
हैं, जो यूपीएससी
में सामाजिक-आर्थिक नैतिकता के प्रश्नों के लिए उपयोगी हैं।
यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता
नैतिकता और शासन: चाणक्य, गांधी और कांत जैसे विचारकों के सिद्धांत प्रशासनिक
नैतिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही को समझने में मदद करते हैं।
सामाजिक सुधार: राजा राममोहन राय और विवेकानंद
जैसे विचारकों के योगदान सामाजिक न्याय और सुधार के लिए प्रासंगिक
हैं।
केस स्टडी: गांधी, सुकरात और मिल के विचार नैतिक दुविधाओं को हल करने में उपयोगी हैं, विशेष रूप से यूपीएससी केस स्टडी प्रश्नों
में।
वैश्विक दृष्टिकोण: मार्क्स और कांत के विचार वैश्विक नैतिकता और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को समझने में सहायक हैं।
निष्कर्ष
भारत और विश्व के नैतिक विचारकों और दार्शनिकों ने नैतिकता, शासन और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके विचार आज भी व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में नैतिकता को आकार देने में प्रासंगिक हैं। यूपीएससी की तैयारी के लिए, इन विचारकों के सिद्धांतों को समसामयिक मुद्दों जैसे भ्रष्टाचार, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय से जोड़कर समझना महत्वपूर्ण है।